Saturday, March 6, 2010

क्या...?

क्या उन्हें याद है कि बेटी होने के साथ साथ में इंसान भी हूँ ... उन्हें अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करनी है ... इस दुनिया को जवाब देना है जल्दी से जल्दी ..." देखो दुनिया वालों , मैने निभा दी अपनी ज़िम्मेदारी - एक बार फिर से ..." फिर से उम्मीद करते है शायद इस बार सब कुछ ठीक हो...

क्या उन्हें याद है ये मेरी जिंदगी है ...उनके जुए कि बाज़ी नहीं... मै जी रही हूँ, कुछ सपने मैने भी पाले है , कुछ हक मेरा भी है मेरी ही जिंदगी पर ...

क्यों मैं उन्हें ये याद दिलाऊं कि मै खुद में भी कुछ हूँ , हाँ मै उनकी बेटी हूँ , घर कि मेहमान हूँ , सब कि ज़िम्मेदारी हूँ ... पर क्या मैं खुद के लिए कुछ भी होने का हक नहीं रखती ... ?

2 comments:

  1. Namita .... Wastav mei tumhaare antarman ki vedanaa ki jhalak paa gaya hoon mei .... Bahut DIL se likha hai ..... Mere blog ko bhi visit karo, maine bhi ek Beti ke Liye ek Kavita likhi hai ........ unbeatableajay.blogspot.com

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  2. a contrast from the last blog where u r retaliating n questioning ur parents burdened by the responsibilty of u getting married....a phase from bewilderment to anger

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