Monday, October 18, 2010

आज भी...

कुछ अनकहे सवाल कुछ अनकहे जवाब है आज भी...
एक अधूरी कहानी , एक बंद किताब है आज भी ...
क्यूँ है दिल में इतनी कसक ...
कोई अपना नहीं फिर भी किसे खोने का डर है आज भी...




टूट जाते है सभी रिश्ते मगर दिल से दिल का रिश्ता अपनी जगह
दिल को है तुझ से ना मिलने का यकीन
"तुझ से मिलने कि दुआ अपनी जगह...."




कहाँ कोई ऐसा मिला जिस पर दुनियां हम लुटा दें 
हर एक ने दिया धोखा , किस किस को भुला दें ,
अपने दिल का दर्द दिल ही में दबाये रखते हैं ...
करदें जो बयां तो सारी महफ़िल को रुला दें ...!!!

2 comments:

  1. apne dard ke samandar ki kuch boonde tumne yahaa Udel di hai ..... Bahut hi sundar likha hai Nami .... Lajawab

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  2. कहाँ कोई ऐसा मिला जिस पर दुनियां हम लुटा दें
    हर एक ने दिया धोखा , किस किस को भुला दें ,

    क्या खूब बयां किया .... कहाँ १ को ही भुलाना मुश्किल होता है, हर एक को भुलाना तो नामुमकिन है ..... सुन्दर रचना...

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