Friday, July 30, 2010

कुछ भी नहीं ....

ज़िन्दगी तुने लहू ले के दिया कुछ भी नहीं ...
तेरे दामन में मेरे वास्ते है क्या कुछ भी नहीं ....


मेरे इन हाथों की चाहो तो तलाशी ले लो ...
मेरे हाथों में लकीरों के सिवाय कुछ भी नहीं ...


हमने देखा है कुछ ऐसे खुदाओं को यहाँ ...
सामने जिनके वो सचमुच का खुदा कुछ भी नहीं ...


ऐ खुदा अब के ये किस रंग से आई है बहार ...
रेत ही रेत है पैरों में हरा कुछ भी नहीं ....


दिल भी एक जिद पे अड़ा है किसी बच्चे की तरह ...
या तो सब कुछ ही इसे चाहिए या कुछ भी नहीं....

.....Unknown

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