इतना हंसा भी ना पाई है जितना रुलाती है जिंदगी ...
जिंदगी के खलीपन कि सजा किसको सुनाये ?
हमें अपनी ही अदालत में खींच लाती है जिंदगी ...
जब भी समेटा है खुद को , कि सँवारे इसे हम
रुख हवाओं का बदल बदल कर बहाती है जिंदगी ...
आज फिर से टूटा है मेरा घरौंदा बनते बनते
और वो देखो कैसे गुमसुम गुमनाम सी चली जाती है जिंदगी ...!!!
"बहुत रोता है ये दिल उस एक आंसू कि खातिर जो निकल आता है ख़ुशी कि इन्तेहाँ होने पर ..."
...Namiके दिल से
"इतना हंसा भी ना पाई है जितना रुलाती है जिंदगी ..."
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ख्याल है नमिता जी.....