मैने अपनी जिंदगी खुली किताब सी बिछा दी उनके सामने ...
ताकि कोई शिकवा गिला ना रह जाये...
उन्होंने मेरी जिंदगी कि किताब को पढ़ा और अपने हिसाब से किताब के पन्ने फाड़ने लगे...
वो पन्ने जो उन्हें पसंद नहीं आये.. वो पन्ने जिनसे मेरी जिंदगी जुडी थी और उनकी नफरत
जब उन पन्नों को मेरी जिंदगी से अलग नहीं कर पाए तो उन्होंने
मेरी जिंदगी कि किताब के पोस्टर छपवा कर बाज़ार में लगा दिए ...
सबको ये बताने को कि मेरी इतनी फटी हुई जिंदगी को भी वो अपनाने को तैयार है
और एक मै हूँ जो उनको अपना नहीं समझती ...तभी तो
मेरी जिंदगी कि किताब के पन्नों को फाड़ने का हक मैने उन्हें नहीं दिया !!!
कमाल कर दिया आपने ....
"मैंने आज़ाद किया अपनी वफाओं से तुझे , बेवफाई कि सजा मुझको सुना दी जाये ...
मैंने मांगी थी उजाले कि फ़क़त एक किरण ...तुम से ये किस ने कहा आग लगा दी जाये "
....नमिता
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