Tuesday, December 15, 2009

वो कहाँ था ?

दिन ढला मनचले भंवरे ने मेरे आंचल को छुआ ... मेरी नज़रों ने उसे ढूंढा पर वो कहाँ था ?
कॉलेज की गलियों में मुझे छेडती सीटी की धुन जब कानों में गूंजी ... मेरी नज़रों ने उसे ढूंढा पर वो कहाँ था ?




वो कहाँ था जब घर के गेहूं पिसने को तैयार होते थे , जब गैस की टंकी बदलनी होती थी ,जब दीवारों को रंगने का वक़्त आता था , जब ट्रेन की टिकिट की लम्बी लाइन लगती थी ....!
 
देर रात सहेली की शादी से घर लौटने के लिए मेने उसे ढूंढा, गली के गुंडों को डराने के लिए मेने उसे ढूंढा .... पर वो कहाँ था ?




मेरी शादी की अटकलों में नहीं था वो , मेरे जीवन साथी की खोजबीन में भी नहीं था , वो तो मेरे पति का नाम जानने भी नहीं आया ... वो नहीं आया मेरे शामियाने के इंतज़ाम में भी ...
 
फिर भी मेरी नज़रों ने उसे ढूंढा पर वो कहाँ था ?
 
वक़्त बदला , मेरी टूटती शादी के इलज़ाम जब पिता पर लगे ...मेरी नज़रों ने उसे पाया वो वहीँ था...!
मेरे ग़म बांटते दोस्तों पर ऊँगली उठाने वाली परछाइयों में , मेरी नज़रों ने उसे पाया वो वहीँ था...!
 
वो वहीँ था जब मेरी ज़िन्दगी की गलतियाँ गिनाई जा रहीं थीं , जब मेरे जीवन के हर पहलु पर उँगलियाँ उठाई जा रही थीं...
 
मुझसे असंतुष्ट लोगों की भीड़ में सबसे आगे जड़ा था वो, मेरे पुनर्विवाह की अटकलों में अब खड़ा था वो, वो था मुझे और आज़ादी न देने के हक में , वो नज़र आता था मुझे फिर से ज़िम्मेदारी बना देने के मद में !
 
वो था मेरी शिकायतों के पुलिंदों में झांकता ... वो था मुझ में घुलती कमियां आंकता ... वो था वही तो था वो देखो वो है वहीँ तो खड़ा है जडवत सा अब घर का बेटा बन के मेरी जिम्मेदारिया नापता .......!
 

1 comment:

  1. it's sad that ur bro was not there when u needed him and also when u needed him most in the hours when everyone was against u including the situations......some people realise one's value a bit late.....alas it should be better late than never

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